Tuesday 4 August 2020

मोहम्मद हनीफ का उपन्यास 'रेड बर्ड्स' यानी लाल परिंदे

      ‘रेड बर्ड्स’ : लाल परिंदे / कार्डिनल

 

रेड बर्ड्स’ (Red Birds) मोहम्मद हनीफ का तीसरा उपन्यास है. 2018 में प्रकाशित इस उपन्यास के समीक्षक इसे उत्तर-आधुनिक उपन्यास की संज्ञा देते हैं. उत्तर-आधुनिक रचना की विशेषताओं के बारे में मुझे बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उपन्यास के बारे में इतना कह सकता हूँ कि यह युद्ध और उसके परिणाम के परिप्रेक्ष्य में अपने वाग्वैदग्ध्य एवं तीखे व्यंग्य से पाठक को कदम-दर-कदम सोचने-विचारने के लिए मजबूर करता है. उपन्यास का लोकेशन मिडल ईस्ट/अरब का वह कोई भी देश हो सकता है, जहाँ दूर-दूर तक फैला रेगिस्तान है; जिसके एक तरफ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका का एयर-ट्रैफिक टावर (रीफ्युएलिंग सुविधा के साथ-साथ लैंडिंग स्ट्रिप) है, जिसे वहाँ के लोग हैंगर के नाम से पुकारते हैं; तो दूसरी ओर दूर से नीले कोरोगेटेड शीट की छतों का दरिया जैसा यूएसएड फ्यूजी कैम्प(USAID FUGEE CAMP) है, जिसे एक कस्बे को बमबारी में नष्ट करने/होने के बाद बसाया गया है. जाहिर है, वहाँ यूएसए की दखलंदाजी है और जंग एक स्थायी व अनसुलझा मसला बन चुका है; कर्नल स्लैटर के शब्दों में किसी सैनिक के लिए युद्ध का मतलब ही क्या कि वह एक अवसर साबित न हो सके’! मतलब साफ है कि अमेरिका को शांति के समय में भी ऐसे अवसर की ताक में हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है. 

सब कुछ ठीक-ठाक चलने के बावजूद मेजर एली को उस कैम्प पर बमबारी के लिए भेजा जाता है, क्योंकि उसके कमांडिंग ऑफिसर कर्नल स्लैटर को शक है कि वह कैम्प बदतरीन बदमाशों के छुपने का गुप्त अड्डा बन चुका है’. वे बदतरीन लोग अमेरिका जैसे महान देश के लिए खतरा हैं और उनकी वजह से वह हैंगर बंद हो चुका है; और यदि उनका शक गलत भी साबित हुआ तो… कह देंगे कि संयोगवश चूक हुई है’. लेकिन संयोग मेजर एली के साथ एक त्रासद मजाक करता है. दो बमों से लैस उसका लड़ाकू विमान क्रैश करके उस रेगिस्तान में धँस जाता है, पर रेत मे आधे फँसे विमान सहित मेजर बच जाता है और उसे उसी कैम्प में शरण मिलती है, जिस पर बमबारी करने भेजा गया था. कैम्प के जिस घर में उसे शरण मिलती है, उसका मुखिया उसी हैंगर में काम करता था और उसका बड़ा बेटा अली भी एक दिन उसी में एक ठेका-श्रमिक के रूप में नियुक्त होता है और उस दिन के बाद लौटकर नहीं आ पाता. अली के छोटे भाई मोमो के अनुसार भाई अली नहीं जानता था कि उसे बेचा गया है. उसे तो इतना ही पता था कि उसे हैंगर में ओवरटाइम की गारंटी के साथ ठेके पर नौकरी दी गई है’. अली से पहले भी उस कैम्प के कई बच्चे इसी प्रकार काम के बहाने ले जाए गए हैं और लौटे नहीं हैं. 

हालाँकि, मोमो अभी मात्र पंद्रह साल का है, किंतु इसी उम्र में वह कैपिटलिस्ट मिजाज का व्यवसायी बनने की ओर अग्रसर है. वह कहता है, ‘मेरा व्यक्तिगत व्यवसायिक मॉडल है जान बचाना और उस दौरान पैसा बनाना. बचाव और पुनर्वास. ज्यादा जोखिम, ज्यादा आमदनी.युद्ध के प्रति उसका भी लगभग वही दृष्टिकोण है जो स्लैटर का है. युद्ध क्यों आता है?...पुनर्निर्माण. और पुनर्निर्माण के लिए हमें क्या चाहिए? सीमेंट. हाँ. लेकिन उसके अलावा क्या? आप केवल सीमेंट से नगरों का निर्माण नहीं कर सकते. नगर-निर्माण के लिए दूसरी अनिवार्य सामग्री कौन-सी है? तो आपको चाहिए रेत.’ (मोमो ने भविष्य में कभी स्थापित की जाने वाली अपनी कंपनी का नाम सैंड ग्लोबल्सरखा हुआ है, जो पूरी दुनिया में पास के रेगिस्तान से रेत सप्लाई करने का व्यवसाय करेगी). मोमो के इस दृष्टिकोण को स्वयं मोमो नहीं, उसका पालतू कुत्ता मट्ट प्रकट करता है. इस उपन्यास में हनीफ ने वाचाल कुत्ते को एक अतिरिक्त औजार के रूप में इस्तेमाल किया है. हालाँकि, मैंने कहीं पढ़ा है कि पहले भी तुर्की के प्रसिद्ध लेखक ओरहान पामुक ने अपने एक उपन्यास में बोलते हुए घोड़े और कुत्ते का इस्तेमाल किया है, जानवरों के मानवीकरण के उदाहरण ग्रीक मिथकों के अलावा हमारे यहाँ भी बहुत पहले पंचतंत्रके रूप में मौजूद रहे हैं. उपन्यास में कुल साठ अध्याय हैं और हर अध्याय में अलग-अलग पात्र आकर एकालाप और वार्तालाप के माध्यम से कथा को आगे बढ़ाते हैं. वैसे तो लगभग हर पात्र किसी न किसी अध्याय में आता है, लेकिन अधिकांश अध्यायों पर मेजर एली, मोमो और मट्ट का वर्चस्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.

इस उपन्यास की विशेषताओं में से एक है- मट्ट का दार्शनिक रूप. वही हमें सबसे पहले रेड बर्ड्स के बारे में बताता है, सुर्ख परिंदों का वास्तव में वजूद होता है, किंतु हम उन्हें देख नहीं पाते; क्योंकि हम उन्हें देखना नहीं चाहते. हमें डर है कि यदि उन्हें देख लेंगे तो वे हमारी स्मृतियों में बस जाएँगे. जब किसी हमले या गोलीबारी में कोई मरता है अथवा जब किसी का गला रेता जाता है, तो उससे निकले खून का आखिरी कतरा एक छोटे-से सुर्ख परिंदे में रुपांतरित होकर उड़ जाता है.वह मोमो के चरित्र को उद्घाटित करते हुए बताता है कि यदि वह इन सुर्ख परिंदों को देख ले तो उन्हें पकड़कर व्यवसाय का एक बड़ा नेटवर्क बनाना चाहेगा. उनके लिए अमेरिकन लोग अच्छी कीमत देंगे और अरब शेख तो दो-दो सौ डालर की कीमत देकर खरीदना चाहेंगे. अपने प्रिय लोगों की आत्माओं को किसी कामुक शेख के हाथो बेचने की कल्पना कीजिए, जो उसे पका-खाकर मर्दाना ताकत (Stiffy) हासिल करेगा. सोचिए कि किसी भड़कीले विवाहोत्सव की सज्जा के लिए आप अपने प्रियतम की स्मृतियों की बिक्री कर रहे हैं. किसी भव्य पिंजरे में फड़फड़ाते हुए इन लाल परिंदों की कल्पना कीजिए. और सोचिए कि आपको किसी समारोह में सजाई गई अपनी निजतम पीड़ा को देखना कैसा लगेगा!

मट्ट के उद्गारों के कुछ और नमूने देखने लायक हैं: 1. तमाम मिथक! तमाम झूठ. लोक-प्रज्ञा सदियों के पूर्वाग्रहों और भय के संचयन के अलावा कुछ भी नहीं.’ 2. ‘उन्होंने खुद को बहादुर बनाने का प्रशिक्षण लिया था, वे अपने ईश्वर और देश पर जीवन अर्पित करने को तैयार थे, लेकिन नहीं जानते थे कि बहादुरी बहुत ज्यादा शोर के साथ पैदा होती है, और उसके बाद अचानक से होने वाली एक खामोशी ही सदा के लिए बची रह जाती है. मरने के बाद आप बहादुर नहीं रह जाते और शीघ्र ही भुला दिए जाते हैं. 3. जो चीजें खो चुकी हैं, उनके पीछे भागना मनुष्य की एक शाश्वत मूर्खता है. मट्ट अपनी जवानी वापस पाना नहीं चाहते; वे किसी गलत जगह पर छूट गई हड्डी के बारे में सोचते हुए अपनी जिंदगी तबाह नहीं करते.’           

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यह भी एक संयोग ही था कि रेड बर्ड्स उपन्यास पढ़ने के दौरान ही, पिछले दो हफ्ते तुर्की के ओट्टोमन/उस्मानिया साम्राज्य की नींव डालने वाले उस्मान प्रथम के पिता और काई कबीले के अर्तुग्रुल गा‌ज़ी की दुस्साहसिक बहादुरी के किस्सों वाले यू-ट्यूब वीडियो के साथ गुजारने का अनुभव प्राप्त हुआ. यह वही ओट्टोमन साम्राज्य है, जिसने लगभग छः सौ साल तक शासन किया और जिसकी सीमा कभी सिंधु नदी से लेकर पुर्तगाल व स्पेन तक फैली हुई थी. युद्ध, रक्तपात, घृणा, द्वेष और विश्वासघात के बीच सच्चे प्रेम, दोस्ती और त्याग की उस अद्भुत कथा में मुसलमानों का मुसलमानों और ईसाइयों के साथ धर्मयुद्ध अथवा क्रुसेड का रोमांचक वर्णन देखने को मिलता है. तेरहवीं शताब्दी के इस कबाइली परिवार को देखते हुए तत्कालीन इस्लामी सभ्यता, संस्कृति, रहन-सहन आदि का आँखों देखा हाल जाना जा सकता है. कोई भी सक्षम कथा-वाचक/ लेखक/निर्देशक तमाम कोशिशों के बावजूद तटस्थ नहीं रह सकता और अपनी शैली से दर्शक या पाठक को अपने भावों की लहर में बहा ले जाता है. हम भी चौहत्तर-पचहत्तर एपिसोड देखने के बाद जब होश में आते हैं तो पेट्रूशिओ मैंजिनी द्वारा खड़े किए गए संकटों और षड़यंत्रों से निरंतर जूझने और उन पर विजय पाने वाले खानाबदोश, साधनविहीन पर बहादुर अर्तुग्रुल के पक्ष में खड़े मिलते हैं. इन ऐतिहासिक पात्रों में ईसाइयों के रोमन चर्च के प्रमुख पदाधिकारी के रूप में एक कार्डिनल भी है, जो मुसलमानों के विनाश एवं जेरुसलम को फिर से अपने अधिकार में लेने की लड़ाई में ईसाई ग्रैंड वज़ीर या उस्ताद-ए-आज़म पेट्रूशिओ मैंज़िनी को निर्देशित करता है और उसके आधार पर सम्राट को क्रुसेड के लिए तैयार करने की अनुशंसा पोप के पास भेजने की जिम्मेदारी लेता है. कार्डिनल आपादमस्तक लाल चोंगा पहनता है. ऐसे ही कार्डिनलों के नाम पर लाल परिंदे को 1985 से पहले कार्डिनल/नॉर्दर्न कार्डिनल कहा जाता था. मेरे विचार से, इस आधार पर, उपन्यास में लाल परिंदे का प्रतीक कौन-सा हो, इसकी छूट पाठक ले सकता है.

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मोहम्मद हनीफ एक पाकिस्तानी उपन्यासकार हैं. वे अंगरेजी में लिखते हैं. पहले एयरफोर्स में लड़ाकू विमान के पायलट और फिर पत्रकार रह चुके, मूलत: एक किसान के बेटे हनीफ ‘अ केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगोज़’ और ‘रेड बर्ड्स’ (Red Birds), दोनों उपन्यासों के कारण चरचा में हैं. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ (2018) में छपे एक साक्षात्कार के आधार पर उनके गंभीर व्यक्तित्व और उनके राजनीतिक उपन्यासों के कथानकों के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. नए उपन्यास रेड बर्ड्स में युद्ध को एक व्यवसाय के नजरिए से एवं जीविका के साधन के रूप चित्रित किया गया है. उनका मानना है कि युद्ध हमारे जीवन का अविभाज्य हिस्सा और हमेशा चलते रहने वाला एक व्यवसाय बन चुका है. यह उपन्यास उन लोगों पर है जो (युद्ध के दौरान) अपहृत होते हैं या मार डाले जाते हैं, पर जो अपनी यादें और निशानियाँ परिवार वालों के हृदय में हमेशा के लिए छोड़ जाते हैं.

भारत में लिंचिंग और हत्यारों को माला पहनाते हुए देख क्या पाकिस्तानी दोस्त यह नहीं कहते कि ‘तुम तो बिलकुल हमारे जैसे निकले? के जवाब में उन्होंने कहा कि, “हम अपने पड़ोसियों से अलग कैसे हो सकते हैं! हम दोनों के लिए दाना-पानी और सांस लेने वाली हवा सब तो एक है. हम विभाजन के वक्त का केवल अनुमान लगा सकते हैं. उन दिनों हमारे पास न तो ह्वाट्सऐप था और न कलाशनिकोव (रायफल) या आरडीएक्स, फिर भी हमने महज अपने हाथों से चक्कुओं, किचेन की छुरियों और डंडों द्वारा दसियों लाख लोगों को मार डाला. मेरे कुछ मित्र कहते हैं- ‘देखिए, बगैर मिलीटरी शासन के, भारत में किस प्रकार का प्रजातंत्र है!’ वास्तव में इससे मुझे सांत्वना नहीं मिलती, दुख होता है, खुद के और बॉर्डर पार वालों के लिए भी. अपने घर में आग लगी हो तो पड़ोसी के घर में भी लग जाए... इसमें कोई दैवी न्याय (डिवाइन जस्टिस) नहीं दिखाई देता. यह भयावह है- यहाँ भी और वहाँ भी.”

यह पूछने पर कि आपके उपन्यास गंभीर रूप से राजनीतिक हैं, वे कहते हैं कि – यह एक प्रकार का अभिशाप है. साधारणतया मैं शुरू तो करता हूँ अच्छी-अच्छी बातों के साथ,  जिन्हें भौतिक और भावानात्मक रूप से आरामदेह जिंदगी जीने वाले लोग पसंद करते हैं; जिनके पास एक प्यारा-सा घर और एक प्यारा-सा परिवार होता है. लेकिन पाँचवें पेज तक जाते-जाते (अचानक) कुछ भयंकर घटित हो जाता है.

पत्रकार अमृता दत्ता साक्षात्कार में आखिरी सवाल पूछती हैं कि ‘ऐसा क्यों है कि पिछले उपन्यास ‘अ केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगोज़’ में आपने एक तानाशाह को मसखरे (क्लाउन) के रूप में चित्रित किया है और अब 2018 में यूएस के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प सामने है!’

वे जवाब देते हैं, ‘असल में हम एक ऐसे वक्त में रह रहे हैं, जो व्यंग्योक्ति के दृष्टिकोण से बहुत कठिन समय है. आज हमारे जीवन का यथार्थ किसी भी अनूठी कल्पना से परे है. लोगों को आज जनरल जिया-उल-हक़ ट्रम्प की तुलना में एक बेहतर राजनेता लगते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे  वाजपेयी मोदी की तुलना में बेहतर और प्रीतिकर लगते हैं. यूरोप में थेरेसा मे (Theresa May) हैं. हमारे समक्ष ऐसे नेताओं की श्रृंखला है, जो एक कार्टून-बक्से से अवतरित हुए जान पड़ते हैं. उनका मजाक उड़ाना मुश्किल लगता है.

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बहरहाल, उपन्यास में वापस आकर हम देखते हैं कि मेजर एली उस रेगिस्तान में आश्रय की तलाश में सात-आठ दिन से भूखा-प्यासा भटकता फिर रहा है कि उसकी नजर मट्ट पर पड़ती है और उसे लगता है कि आश्रय कहीं आस-पास ही है और उसकी जान बच जाएगी. मट्ट भी एली को देखता है, किंतु उससे पहले उसे उसी जगह से एक लाल परिंदा आसमान की ओर उड़ता दिखाई देता है. मोमो मट्ट को तलाश करता अपनी जीप से आता है और दोनों को अपने कैम्प ले जाता है. बमबारी के बाद तबाह हुए कस्बे (कैम्प) का संसार अब यूएसए (USAID) की सहायता पर टिका हुआ है. यूएसएड विभिन्न सामग्री ही नहीं देता, और भी बहुत कुछ करता है. बमबारी के बाद कैम्प के बच्चों के माताओं-पिताओं के लिए ‘Living with Trauma’ और ‘Traditional Cures in a Time of Distress and Disorder’ के वर्कशॉप स्थापित किए गए हैं. मोमो के पिता एक दिन अपने साथ एक अमेरिकन औरत लाते हैं, मोमो की माँ जिसको गुलबदन (फ्लॉवरबॉडी) नाम देती है. फ्लॉवरबॉडी परिवार पुनर्वास प्रोग्राम के अंतर्गत $120 प्रतिदिन के ठेके पर कोऑर्डिनेटिंग ऑफिसर बनकर आई है. वह बमबारी से प्रभावित परिवारों के किशोरों के मन-मस्तिष्क का अध्ययन करना चाहती है. उसने अपनी पीएचडी की थीसिस का नाम रखा है, ‘किशोर मुस्लिम मन, उसकी आकांक्षाएँ एवं आशाएँ’. वह कहती है कि इस आधार पर जो पुस्तक लिखी जाएगी, उसका नाम रहेगा रेगिस्तान के बच्चे’. मोमो कहता है, ‘Post Traumatic Stress Disorder. वे पहले आसमान से हम पर बम बरसाते हैं, फिर बड़ी मिहनत से हमारी तंगहाली/तनाव का इलाज करते हैं ….हमें मिलता है पीटीएसडी और उसे(फ्लॉवरबॉडी को) प्रति दिन यूएस डॉलर.

गुलबदन की देह से निकती सेंट की खुशबू और सुंदरता से आकर्षित होकर मोमो उसके जितना निकट जाता है, उतना ही मट्ट और मोमो की माँ तनाव महसूस करते हैं. मट्ट इस बात से परेशान है कि मोमो अब उस पर ध्यान कम दे रहा है. मोमो की मदर डियरदूसरी बात से परेशान हो, गुलबदन को सावधान करते हुए कहती है कि मोमो देखने में ही किशोर लगता है, पर वास्तव में जवान हो चुका है. वह फादर डियरसे भी रोज-रोज नोक-झोंक करती है. उधर मोमो जहाँ फ्लॉवरबॉडी के प्रति जितना नरमदिल है, उतना ही मेजर एली से नफरत करता है और भाई अली को पाने के लिए बंधक के रूप में उसका इस्तेमाल करना चाहता है. दोनों अतिथियों को बड़े-से आंगन के दूसरे किनारे पर बनी दो कोठरियों में रखा गया है. उपन्यास के अंत में, हैंगर में हलचल का आभास पाकर पूरा परिवार एली को लेकर अली से अदला-बदली की नीयत से वहाँ पहुँचता है. पीछे-पीछे फ्लॉवरबॉडी भी एक डॉक्टर के साथ पहुँचती है. कहानी उस जगह जादुई यथार्थ के आश्रय में जाती जान पड़ती है. वहाँ अली, कर्नल स्लैटर, एली की पत्नी कैथ, और कुछ अन्य लोग/प्रेतात्माएँमौजूद हैं.

मोहम्मद हनीफ अमेरिका की विदेश नीति पर ही नहीं, बल्कि अपनी परंपराओं पर भी जगह-जगह चोट करते दिखाई देते हैं. इस मोर्चे पर उन्होंने मदर डियरको आगे किया हुआ है. इस संबंध में एक चुभता हुआ प्रसंग उद्धृत किया जा सकता है:

मदर डियर को समर्पित इस अध्याय में वे पूरी तरह से छाई हुई हैं. फादर डियर ने उन्हें हिदायत दे रखी है कि चूँकि लोग उनसे मिलने बराबर आते रहते हैं, उनके सामने मदर डियर को अपना सिर ढके रखना चाहिए. एक दिन वे रोजाना की तरह पानी लाने जाती हैं तो उनका डुपट्टा तालाब पर ही छूट जाता है. पानी लेकर लौटने पर दूर से ही घर के सामने मिलने वाले कुछ लोग खड़े दिखाई देते हैं. वे झटपट अपना कुर्ता निकालकर उससे माथा ढक लेती हैं. घर में घुसते समय बाहर खड़े लोगों की तौबा…तौबाजैसी भुनभुनाहट सुनाई देती है और फादर डियर उन्हें धकेलते हुए अंदर ले जाकर डाँटते हैं. मदर डियर उनके घुटने पर ठोकर मारते हुए जवाब देती हैं, ‘मैंने अपना सिर ढँक रखा है.

लेकिन नीचे…तो देखो?’

क्या देखूँ? मैंने अंडरशर्ट पहन रखा है, ओके! मेरे बाजू जरूर नंगे हैं, लेकिन उन्हें ढंकने के लिए तुमने तो नहीं कहा था! मैंने अपना सिर तो ढक रखा है, जहाँ मेरी इज्जत है, और जो सही सलामत है. वह बाजुओं पर भी होती है क्या? तो तुम्हें एक ही बार में बोल देना चाहिए था न?’

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