Monday 13 February 2017

मेरी कुछ प्रेम कविताएँ

कुछ कथाकारों के पास कविता लिखने की भी अद्भुत क्षमता है. दुर्भाग्य से मैं उन में नहीं. मुझे कविता लिखना बिलकुल नहीं आता. लेकिन मुझे यह भी पता है कि ऐसा शायद ही कोई गद्य-लेखक हो, जिसने अपने जीवन में कभी न कभी, अच्छी या बुरी कविताएं न लिखी हों. मैंने भी कई दशक पहले कुछ बुरी कविताएं की हैं, जिनमें से, दोस्तों की उदारता के कारण, कुछ को छपे हुए शब्द भी नसीब हो सके हैं. पर अपने कथा-साहित्य में, पाठकों और संपादकों के मन में इनके माध्यम से कहानी आगे बढ़ाने का भ्रम पैदा करते हुए, काट-पीटकर, कुछ ज्यादा बुरी कविताओं का उपयोग चालाकी से करता रहा हूँ. फेसबुक पर रोज़ सैकड़ों की संख्या में पोस्ट की जा रहीं कविताओं को देखकर मेरे अंदर भी (मेरी कहानियों में छपीं) कुछेक (प्रेम) कविताओं को स्वतंत्र रूप से सामने रखने का लोभ भयानक हो चला है. सो प्रेम का अंत अर्थात अंत में केवल प्रेम :--      

अंत में केवल प्रेम
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(1)
वक्त रुक गया
और देखता रहा
जैसे देखती है धरती
दिन और रात
गर्मी ठंडी बरसात
जैसे प्यासा देखता हो पानी
देखता हो मरता हुआ आदमी
छूटती हुई दुनिया
रुक गया वक्त आया स्पर्श
जैसे हवा छू लेती हो धरती
फूल नदी और समंदर
जैसे छूता हो किसान आद्रा में जुता हुआ खेत
छूता है बच्चा मां का स्तन और
कुम्हार चाक पर रखी मिट्टी
तेरा स्पर्श
ओ ज़िंदगी!
किसी की आंखों का इंद्रधनुष
आने की आहट
होठों का स्वाद
और... जैसे पानी पर लिखी कविता.
(2)
हम एक ऐसे मोड़ पर मिले थे जहाँ से
कोई राह
नहीं दिखाई देती थी आगे की ज़मीन
और पीछे....
वक्त कोई रिकार्डप्लेयर नहीं था
तुम्हारी पुतलियों में झिलमिला रहे थे ढेर सारे सितारे
उन में से कौन हूँ कहा हूँ जानने की कोशिश में
एक खूबसूरत झूठ से
ओझल हो गया था बदरंग अतीत
शोषण और भूख की ज़मीन से उपजा अवसाद
और संघर्षों के शंखनाद भी
आंखों के सामने पसरा था एक आभासी वर्तमान
प्रिय!
हमारा प्रेम क्या ऐसा नहीं लगा
जैसे भूख और बेकारी से भागकर शरण ली हो
किसी पराए देश में
बिना किसी पासपोर्ट और वीज़ा के!  
(3)
तमाम अनिश्चितताओं और झूठ और अविश्वास के बीच
एक शाम
जब सुनाई देने लगा था मृत्युराग
बजने लगे थे विदा के घरीघंट
रख दिया था आहिस्ते से
आशंका, ईर्ष्या और असुरक्षा के ताप से
झुलसते माथे पे अपना हाथ
अपने बच्चे सा लगा लिया था सीने से
सुनाई दे रही थीं साफ-साफ धड़कनें
तुम्हारे बिना होना क्या न होना भी क्या
तुम्हारे होने का एहसास
ये धड़कन ये सांस
और मैं केवल हवस और एषणा में
होता हुआ कृतघ्न
जितना पाया रख न सका
होता रहा बेचैन उसके लिए जो नहीं सुन सका
राग जीवन का.
(4)
एक जीवन में पता नहीं कितने जन्म
मृत्यु से पहले न जाने कितनी मृत्युएं
तुम्हारी हिदायतें कि रहो बस अपने में
मत देखो बाहर
कहाँ जाता है दूसरा क्या लेता है
देता है क्या...
नहीं रही शिकायत लेन-देन की
लिया है ज्यादा दिया है कम
और देखता हूँ गौर से
तो लिया ही लिया है
लोगों ने तो दे दिया है
फोएनिशिया साइप्रस और सिसिली जैसे पूरे इलाक़े
छोड़ दिया है तख्त और ताज़
आज भी तो देने वाले लोग
दे दिया करते हैं ग्रीस का
स्कॉर्पियो नाम का भव्य निजी द्वीप
सोना चांदी हीरा जवाहरात
इन सब के सामने कहाँ टिक सकता है
बस एक खाली सा प्रेम!

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